ईद उल अदाह ( बकरीद ) पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी

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Today Express Nees ।अजय वर्मा की रिपोर्ट । ईद अल अदाह का त्योहार पूरे देश के साथ साथ फ़रीदाबाद में भी धूमधाम से मनाया जा रहा है । इस त्योहार को मुस्लिम समुदाय के लोग कुर्बानी के रूप में मनाते है। इसे बकरीद भी कहा जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करने के बाद बकरे की कुर्बानी देते है। इस्लामिक मजहब की मान्यताओं के मुताबिक पैगम्बर हजरत इब्राहीम से ही कुर्बानी देने की परम्परा शुरू हुई थी।  बकरीद का त्योहार मीठी ईद के करीब दो महीनों बाद आती है और इसे मुसलमानो का प्रमुख त्योहार माना जाता हैं । दुनियाभर में इसे 31 जुलाई को मनाया जाता है लेकिन इस बार इसे 1 अगस्त को मनाया जा रहा है। असल मे ईद के त्योहत की तारीख चांद का दीदार करने के बाद ही तय की जाती है।

इस त्योहार के महत्व की बात करें तो इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर हज़रत इब्राहीम से ही कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई थी।इब्राहिम अलैय सलाम की कोई औलाद नही थी। उन्हें कई मिन्नतों के बाद औलाद का सुख हासिल हुआ। पुत्र का नाम इस्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे को बेहद प्यार करते थे । एक रात अल्लाह इब्राहिम के सपने में आये और उनसे सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी की बात कही उन्होंने अपने तमाम जानवर कुर्बान करने की बात कह दी इसके बावजूद अल्लाह ने उनसे ओर भी प्यारी चीज कुर्बान करने को कही तो अपने दिल के टुकड़े बेटे को कुर्बान करने की बात कह दी ओर इसे अल्लाह का आदेश माना। कुर्बानी देते वक्त इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और कुर्बानी देने के बाद जब इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाई तो देखा उसका बेटा जीवित है। यह देख वह बेहद खुश हुआ। कहा जाता है कि अल्लाह ने उसके कुर्बानी के जज्बे ओर उसके विश्वास को देखते हुए उसके बेटे की जगह बकरे को बदल दिया । तभी से इस दिन को इब्राहिम द्वारा दी गयी कुर्बानी को याद करते हुए बकरों की कुर्बानी देकर ईद उल अदाह यानी बकरीद मनाई जाती है।

इस दिन सभी देश वासी हिन्दू हो या मुस्लिम एक दूसरे को बधाई देते है और यही खूबसूरती हमारे देश की है । इसलिए कहते है भारत सोने की चिड़िया है जहां अनेकता में भी एकता और भाईचारा शामिल होता है।

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