क्यों पुरुष और महिला दोनों ही निसंतानता संकट की ओर बढ़ रहे हैं?- डॉ. चंचल शर्मा

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Today Express News | किसी भी दंपति का परिवार तभी पूरा माना जाता है जब उनकी गोद में संतान का सुख हो। भारत में पुरुषों और महिलाओं दोनों में निसंतानता का बोझ बढ़ रहा है। निसंतानता एक ऐसी स्थिति है जिसमें दपंति एक साल तक यौन संबंध बनाने के बाद भी महिला गर्भधारण करने में असमर्थ होती हैं।

वास्तव में निसंतानता की समस्या अब शहर तक सीमित नहीं रही, यह समस्या ग्रमीण क्षेत्र में पहुंच गई है। अब हालात यह हैं कि 30 करोड़ दपंति किसी न किसी वजह से निसंतानता की समस्या से जुझ रहे हैं। दुर्भाग्यवश इस समस्या में न केवल स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक कारण भी जोड़ों पर भावनात्मक दबाव पैदा कर रहे हैं।

आशा आयुर्वेदा की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा कहती हैं की, जैसे युवा जोड़ों में अब निसंतानता चिंताजनक दर से बढ़ रहा है। वैसे ही निसंतान दंपत्तियों द्वारा आईवीएफ तकनीक (एआरटी) का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन इस परिक्रिया मे 70 % मरीजों को असफलता का सामना करना पड़ता है। जिस वजह से महिला को शरीरिक और मानसिक रुप से पीड़ा सहनी पड़ती है।

डॉ. चंचल शर्मा कहती हैं, “आज के युवा जोड़े अपनी शिक्षा, करियर विकल्पों और सामाजिक दवाब के कारण गर्भधारण में देरी करते हैं। हम जानते हैं कि एक महिला की प्रजनन क्षमता उम्र सीमित होती है। पुरुषों की बात आती है, तो शुक्राणु की गुणवत्ता उम्र के साथ कम होती जाती है। गर्भधारण की सबसे अच्छी संभावना 30 साल कम आयु वर्ग में होती है।”

उनका कहना है कि इसके अलावा एंडोमेट्रियोसिस, बंद फैलोपियन ट्यूब, हार्मोनल विकार, प्रदूषण, अनियमित मासिक धर्म, संक्रमण (पीआईडी, एसटीआई व यूटीआई) और पीसीओडी, पीसीओएस जैसे अन्य कारक महिलाओं में निसंतानता का कारण बन सकते हैं। वहीं पुरुषों में शुक्राणु की कमी, गुणवत्ता, असामान्य आकृति विकार और अन्य कारक भी पुरुषों में निसंतानता का कारण बनता है।

पुरुषों और महिलाओं में अत्यधिक तनाव से भी उनकी प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकता है। यह महिलाओं में ओव्यूलेशन को प्रभावित करता है और पुरुषों में शुक्राणु उत्पादन और टेस्टोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित करता है। तनाव से उबरने के लिए धूम्रपान, अवैध नशीली दवाओं का सेवन और शराब का सेवन जैसी अस्वास्थ्यकर आदतें पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती हैं। एक गतिहीन जीवनशैली जिसमें लगातार बैठे रहना, शारीरिक गतिविधि की कमी और जंक फ़ूड, प्रसंस्कृत और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का नियमित सेवन से निसंतानता की संभावना बढ़ जाती है।

डॉ. चंचल शर्मा कहती है कि आयुर्वेद की 5000 साल पुरानी पद्धति में निंसतानता का इलाज बिना सर्जरी के संभव है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह की पुराने काल से पंचकर्म पद्धति से निसंतानता का इलाज किया जा रहा है। लोग आईवीएफ जैसी तकनीकों पर लाखों रूपये खर्च कर देते हैं। वहीं आयुर्वेद में काफी कम बजट में इन्फर्टिलिटी का उपचार किया जा सकता है। इन्फर्टिलिटी का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट पूरी तरह से प्राकृतिक होता है। इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ भी नहीं होती है। ऐसे लाखो पेशेंट हैं, जिनका सफल उपचार किया गया है। पंचकर्म में उत्तर बस्ती एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रिया है जो निसंतानता के इलाज में प्रभावी साबित होती है। इस इलाज की खास बात यह कि बिना किसी दर्द या सर्जरी के नेचुरल तरीके से गर्भधारण करते है और इसकी सफलता दर 90 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

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