केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और प्रतिरक्षा को मजबूत बनाने को निवारक उपायों के रूप में उपयोग करने का सुझाव दिया है

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Mr. Anand Shrivastava

कोविड-19 के प्रकोप के बाद से, प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल, संक्रमण को खत्म करने के लिए प्राकृतिक जीवनशैली और योग को अपनाने की चारों तरफ काफी चर्चा रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चिकित्सा की इस प्राचीन प्रणाली, आयुर्वेद का सरोकार मानव से है, बीमारी से नहीं। बीमारी की रोकथाम, रक्षा तंत्र को मजबूत बनाना और स्व-मरम्मत तंत्र को सपोर्ट/समर्थन करना आयुर्वेदिक उपचार में प्रमुख रूप से शामिल है। यह मुख्य रूप से फिजियोलॉजी (शरीर क्रियाविज्ञान) को मजबूत करने पर बल देती है, ताकि एक व्यक्ति बीमार न पड़े, और यदि बीमार हो भी जाए तो शरीर को अधिक नुकसान पहुंचे बिना ठीक हो जाए।

आयुर्वेद के महत्व को बनाए रखने और चलाने, तथा जनता को कोविड-19 के परेशानी भरे इस दौर में इसकी प्रभावकारिता को समझाने के लिए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने हाल ही में कोविड-19 के नैदानिक प्रबंधन के लिए एक प्रोटोकॉल जारी किया है। कोविड-19 की रोकथाम, इसके उन मामलों में जिनमें मामूली या कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, के लिए इस प्रोटोकॉल में आहार के उपायों, योग और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों तथा सूत्रणों जैसे अश्वगंधा को सूचीबद्ध किया गया है।

डॉ. हर्षवर्धन ने एक बयान में कहा था, “निवारक और रोगनिरोधी उपाय के लिए तैयार किया गया यह प्रोटोकॉल न केवल कोविड-19 के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि आधुनिक समय की समस्याओं के समाधान के लिए पारंपरिक ज्ञान को प्रासांगिक बनाने में भी महत्वपूर्ण है।”

इस बात पर ज़ोर/बल देते हुए कि आयुर्वेद का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की नींव में महत्वपूर्ण प्रभाव है, डॉ. वर्धन ने कहा, “दुर्भाग्य से, देश की स्वतंत्रता के बाद आयुर्वेद को उतना महत्व नहीं मिला, जब तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी महत्ता स्थापित करने का बीड़ा नहीं उठाया।”

वर्तमान अवलोकन के अनुसार, एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रणाली कोविड-19 की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है और इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए कारगर। आयुष मंत्रालय ने अपने प्रोटोकॉल दस्तावेज में यह बताया कि कोविड-19 के पश्चात के प्रबंधन में अश्वगंघा और रसायण चूर्ण को भी सूचीबद्ध किया गया है। ताकि, फेफड़ों की जटिलताएं जैसे फाइब्रोसिस, थकान और मानसिक अस्वस्थ्ता को रोका जा सके और कोविड-19 की प्राथमिक रोकथाम के लिए योग को अपनाया जा सके।

महर्षि आयुर्वेद के अध्यक्ष, आनंद श्रीवास्तव कहते हैं, “निःसंदेह, आयुर्वेद और योग पर आधारित कोविड-19 के प्रबंधन पर स्वास्थ्य मंत्रालय के नवीनतम प्रोटोकॉल में आयुर्वेद की उपचार की विशेषताओं को रेखांकित किया गया है, इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति को इस प्रोत्साहन की बहुत लंबे समय से प्रतीक्षा थी। और नेशनल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल द्वारा कोविड-19 के प्रबंधन के लिए अश्वगंधा और रसायण चूर्ण को सूचीबद्ध करने ने आयुर्वेद के महत्व को और बढ़ा दिया है। जैसा कि प्रोटोकॉल बताता है कि कोविड-19 की रोकथाम के लिए एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण है, और प्रतिरक्षा को बढ़ाने में रसायणों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह प्रोटोकॉल वर्तमान परिदृश्य में रसायण की उपयोगिता की उत्तमता को स्थापित करता है।”

श्रीवास्तव ने आगे बताया, “आयुर्वेदिक उपचार मानवकेंद्रित है, रोग केंद्रित नहीं और इसमें दवाएं भी इसी के अनुरूप होती हैं। यह शारीरिक कार्यों में संतुलन पुनः स्थापना करने के द्वारा शारीरिक क्रियाविज्ञान को मजबूत बनाकर बीमारियों को ठीक करने का लक्ष्य रखता है। इसलिए, समस्थिति या संतुलन पाने के लिए ‘मानव शारीरिक क्रिया विज्ञान’ का समर्थन किया जाता है, जो स्वास्थ्य का आधार है। आयुर्वेदिक दवाएं न केवल बीमारियों को रोकने और ठीक करने में सक्षम हैं, बल्कि बीमारियों के पश्चात होने वाली जटिलताओं के प्रबंधन में भी सहायक है। जैसे कोविड-19 के दौरान विकसित होने वाली जटिलताओं से छुटकारा पाने के लिए कोविड-19 के पश्चात उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य सेवाएं।”

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के बयान का हवाला देते हुए कि देश की स्वतंत्रता के बाद आयुर्वेद को उतना महत्व नहीं मिला, लेकिन अब हम देखते हैं कि हर जगह लोगों ने आयुर्वेद को एक शक्तिशाली निवारक चिकित्सा के रूप में मान्यता दी है। आयुर्वेद, केवल एक शक्तिशाली निवारक चिकित्सा नहीं है, बल्कि एक शक्तिशाली उपचारात्मक चिकित्सा भी है।

आयुर्वेद का सदियों पुराना विज्ञान, भारत की चिकित्सा प्रणाली है, जो स्वास्थ्य और रोग की अपनी समझ में अंर्तसंबंध की अवधारणा को एकीकृत करती है। आयुर्वेद, मानव शरीर को एक अविभाज्य सकल के रूप में मानता है, जिसमें कार्यप्रणालियों, मन और चेतना का अंतर्संबंध नेटवर्क है। जिसमें एक क्षेत्र में गड़बड़ी की प्रतिक्रिया अन्य क्षेत्रों से भी प्राप्त होती है। हालांकि, अब कोविड-19 महामारी के संकट के इस समय में आयुर्वेद के महत्व को पहचाना जा रहा है।

इसी तरह, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में आयुर्वेद रसायन का अंतर्निहित लेकिन चिरस्थायी प्रभाव होता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। जो शरीर को संक्रमण से बचाता है और संचारी रोगों के प्रसार को रोकता है। मूलरूप से, रसायण, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का एक संयोजन है, जो सही अर्थों में प्राकृतिक है और समग्र स्वास्थ्य पर संतुलित तथा सहायक प्रभाव छोड़ता है।

इन सभी विशेषताओं को समाहित करते हुए, एक रसायन है जो व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, वह है महर्षि आयुर्वेद का अमृत कलश। यह वैज्ञानिक रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुआ है, इसलिए इसमें कोविड-19 के संक्रमण के बाद के प्रबंधन की क्षमता है।

इसके अलावा, आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल में महर्षि आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण योगदान यह भी है कि केवल लक्षणों को शांत करने के बजाय बीमारी की जड़ का उपचार किया जाए। यह आयुर्वेदिक ज्ञान के आधारभूत तत्वों की गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो समग्र स्वास्थ्य और स्वस्थ्य जीवन को दीर्घायु बनाए रखने के लिए शरीर की अपनी आंतरिक बुद्धिमत्ता को बनाए रखता है और मजबूत करता है।

इसी तरह, योग और इसका नियमित अभ्यास कोविड-19 संक्रमण के प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह तनाव के नकारात्मक आक्रमण को कम करता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली पर बुरा प्रभाव डालता है।  यह शरीर के स्वास्थ्य और तेजी से ठीक होने का एक शाश्वत और समग्र प्रारूप है।  योग का नियमित रूप से अभ्यास बल और जीवनशक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है, जो हमें ऐसे संक्रमणों से बचाते हैं, जिनसे हम कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद से अब तक जूझ रहे हैं।

योग के कई लाभों को ध्यान में रखते हुए, हाल ही में जारी किए गए स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रोटोकॉल में उल्लेख किया गया है कि आयुर्वेद और योग निवारक उपायों को बढ़ाने में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कोविड-19 की वर्तमान समझ यह दर्शाती है कि रोग से बचाव और उसके प्रकोप से रक्षा के लिए अच्छी प्रतिरक्षा स्थिति महत्वपूर्ण है।

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