टुडे एक्सप्रेस न्यूज़ । रिपोर्ट अजय वर्मा । 10 सितंबर| अवसाद समेत कई अन्य कारणों से बढ़ते आत्महत्या के मामलों पर रोक लगाने के उद्देश्य से हर साल 10 सितंबर को ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है। इस संबंध में जानकारी देते हुए मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स से क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल ने कहा कि सुसाइड की स्थिति तब आती है, जब तीन चीजें मिलती हैं- निराशा, लाचारी और मूल्यहीन। जिन लोगों के दिमाग में सुसाइड (आत्महत्या) करने के ख्याल आते हैं तो हमें इसके कारण को समझना चाहिए। उनके कारणों को नकारने के बजाय समझना चाहिए ताकि वो इंसान आपसे खुलकर बात कर सके। उन्हें महसूस कराना चाहिए कि उनके जीवन में भी आशा है, उनके जीवन का भी मूल्य है। ऐसे लोगों की भावनाओं की कदर करना बहुत जरूरी है ताकि वे अपनी भावनाओं को साझा कर सकें और निराशाजनक, लाचारी और मूल्यहीनता भरी स्थिति से बाहर निकल सकें।
अगर किसी व्यक्ति के अन्दर सुसाइड करने के ख्याल आते हैं तो उसे प्रोफेशन हेल्प दिलाना बहुत जरूरी है। उसे किसी साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाएँ। हमें बच्चे से लेकर बड़े लोगों की भावनाओं की कदर करनी चाहिए, अहमियत देनी चाहिए। महज एक ड्रामा का रूप देकर नज़रंदाज नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें एक आशा देना बहुत जरूरी होता है। ऐसा केवल तभी हो सकता है जब हम उनकी भावनाओं, चिंताओं को महत्व देंगे।
आजकल टीनएजर्स (किशोरों) में आत्महत्या का ख्याल बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। टीनएजर्स के संघर्ष बदल रहे हैं। आज के टीनएजर्स का अपने बड़े भाई-बहनों से भी जनरेशन गैप हो रहा है। बहुत ज्यादा बड़े लोग टीनएजर्स के स्ट्रेस (मानसिक तनाव) को स्ट्रेस नहीं मानते हैं। इस कारण वे अपने आपको अकेला या बिना किसी मदद के महसूस करते हैं। इसलिए इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि भले ही आपको सामने वाले का स्ट्रेस आपको जायज लगे या नहीं, लेकिन उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका दिया जाना चाहिए।
माता-पिता द्वारा टीनएजर्स को ठीक से न समझने और सामाजिक स्तर पर अपेक्षाओं की वजह से टीनएजर्स में आत्महत्या की घटनाओं के मामले सबसे ज्यादा आ रहे हैं। महीने में ओपीडी में सुसाइड के ख्याल वाले 30-35 मरीज आ जाते हैं।