विश्व स्वास्थ्य दिवस पर डॉ. श्वेता मेंदिरत्ता ने मातृ एवं नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी दी।

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On World Health Day, Dr. Shweta Mendiratta gave information about the health of mothers and newborn babies.

टुडे एक्सप्रेस न्यूज । रिपोर्टों । अजय वर्मा । लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 7 अप्रैल को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है। इस बार की थीम ‘मातृ एवं नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा को बढ़ाने पर केन्द्रित है। इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद में ऑब्स्टेट्रिक्स एवं गायनोकॉलोजी विभाग की एसोसिएट क्लीनिकल डायरेक्टर एवं हेड यूनिट-2 डॉ. श्वेता मेंदिरत्ता ने कहा कि जब महिला का प्रसव होता है तो दो महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाता है कि माता और नवजात बच्चा दोनों का स्वास्थ्य अच्छा हो। माँ को ज्यादा जटिलताएँ न हों जैसे डिलीवरी के बाद ज्यादा ब्लीडिंग न हो इसे पोस्टपार्टम हेमरेज कहते हैं। जन्म के बाद बच्चा तुरंत रोए और उसे तुरंत गर्म टेम्प्रेचर में रखा जाए। उसे ठंड नहीं लगनी चाहिए और इन्फेक्शन नहीं होना चाहिए। सबसे जरूरी है कि बच्चे को माता के सीने पर रख दिया जाए, ताकि बच्चे का बॉडी टेम्परेचर ठीक बना रहे और माता के साथ उसका लगाव शुरू हो जाए, स्तनपान शुरू हो जाए। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद माँ को बेबी को स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि माँ का पीला दूध बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। बच्चे की इम्युनिटी यानि रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ता है। बच्चे को कई प्रकार के इन्फेक्शन से बचाता है। विश्व संगठन के अनुसार, माँ को बच्चे को कम से कम 2 साल तक स्तनपान कराना चाहिए। स्तनपान कराने से बच्चे के साथ-साथ माँ के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है।

जब महिला गर्भवती होती है तो उसे फिजिकली तौर पर अपना ध्यान रखना चाहिए। साथ ही मानसिक और भावनात्मक तौर पर परिवार की तरफ से सपोर्ट मिलना चाहिए। फिजिकली तौर पर मतलब उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार में भोजन खाना चाहिए। दिनभर में पर्याप्त मात्रा में पानी पियें। भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट व्यवस्थित मात्रा में होना चाहिए। फ्रूट्स, सलाह लें और इन्हें थोड़े-थोड़े इंटरवल में खाना चाहिए। प्रेग्नेंट होने के लगभग 2 महीने बाद महिला के ब्रैस्ट में दूध बनना शुरू हो जाता है। इसके अलावा महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं जैसे बच्चे के बढ़ने के साथ गर्भाशय का साइज़ कई गुना बढ़ जाना, पेट में भारीपन महसूस होना, पीठ में दर्द होना, वेरीकोज वेंस की समस्या होना या कई बार पाइल्स की शिकायत होना आदि। इसलिए गर्भवती महिला को नियमित रूप से महिला रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रहना चाहिए। डिलीवरी के दौरान महिला का ब्लड काउंट अच्छा होना चाहिए। अगर गर्भवती महिला में खून की कमी है तो इसका माँ और बच्चे के स्वास्थ्य पर काफी खराब असर पड़ता है इसलिए इस खून की कमी को दूर किया जाना चाहिए। उसमें खून की पूर्ति की जाए। एंटीनेटल केयर यानि गर्भावस्था के दौरान महिला के हाई बीपी, शुगर लेवल्स की नियमित जाँच होनी चाहिए ताकि उनका समय रहते इलाज किया जा सके और ताकि प्रसव के दौरान माँ और बच्चा दोनों के लिए जटिलताएँ कम हो जाएँ।

सलाह:

· जन्म के बाद बच्चे को ठंड लगने का बहुत ज्यादा जोखिम होता है इसलिए बच्चे के खासकर सिर, हाथ, पैर को अच्छे से ढक कर रखना चाहिए

· बच्चे को इन्फेक्शन से बचाने के लिए ऊपर का दूध न पिलाएं, बच्चे को केवल माँ का दूध ही दिया जाए क्योंकि ब्रेस्ट मिल्क से बच्चा कान का इन्फेक्शन, डायरिया, बदहजमी, स्किन समस्या, अस्थमा आदि से बचा रहता है क्रोनिक

· स्तनपान कराने से माँ के अन्दर ओवेरियन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम कम हो जाता है। इसके अलावा ओबेसिटी, टाइप 2 डायबिटीज, हाइपरटेंशन का रिस्क भी कम होता है।

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