1. मिर्गी (एपिलेप्सी) किसे कहते हैं?
एपिलेप्सी ऐसी मेडिकल कंडीशन होती है जिसमें नर्व सैल्स (तंत्रिका कोशिकाएं) सही तरीके से न्यूरॉन्स तक संदेश को कम्युनिकेट नहीं कर पाती। कई बार ब्रेन में अचानक इलैक्ट्रिक एक्टिविटी होती है जो संवेदात्मक व्यवहार और मांसपेशियों की गतिशीलता को प्रभावित करती है। हालांकि एपिलेप्सी का इलाज उपलब्ध नहीं है लेकिन इसे मैनेज करने के कई विकल्प हैं। दवाओं के सेवन से, करीब 70% एपिलेप्सी मरीजों में मिर्गी के दौरे मैनेज किए जा सकते हैं।
एपिलेप्सी कई कारणों से होती है। करीब 70% मामलों में, सही कारणों का पता नहीं चल पाता। लेकिन कुछ कारण जेनेटिक होते हैं और परिवारों में कुछ खास प्रकार की एपिलेप्सी पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहती हैं। इसके अलावा, मेसियल टेम्पोरल स्क्लेरोसिस, जो कि ब्रेन में घाव का कारण बनती है, की वजह से मिर्गी के दौरे आते हैं। ब्रेन इंफेक्शंस की वजह से कुछ घाव या चोट और इम्यून डिसऑर्डर भी दौरे का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर और ब्रेन की अन्य कंडीशंस जैसे ट्यूमर्स स्ट्रोक और असामान्य ब्लड वैसल्स की वजह से भी मिर्गी की शिकायत हो सकती है।
रोग के कारणों को समझकर डॉक्टर सही ढंग से एपिलेप्सी का निदान और उपचार कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, जेनेटिक टेस्ट से मेटाबॉलिक डिसऑर्डर की पहचान होती है जबकि ब्रेन स्कैन्स की मदद से डॉक्टर ट्यूमर्स वगैरह को पकड़ पाते हैं। इन कारणों की समझ के बाद डॉक्टरों के लिए एपिलेप्सी को मैनेज करने में सुविधा होती है और रोगियों की लाइफ क्वालिटी में भी सुधार आता है।
2. क्या पिछले पांच वर्षों के दौरान रोग के डायग्नॉसिस में कोई बढ़ोतरी या कमी देखी गई है?
पिछले पांच वर्षों के दौरान, एपिलेप्सी के डायग्नॉसिस में बढ़ोतरी हुई है जिसके परिणामस्वरूप मरीज के उपचार और रोग से बचाव में मदद मिली है।
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उन्नत तकनीकेंः एपिलेप्सी के डायग्नॉसिस में EEG CT MRI PET तथा SPECT और MEG एवं MRS की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है।
ईईजी (EEG): यह मस्तिष्क की तरंगों (ब्रेन वेव्स) को रिकॉर्ड करता है जिससे ब्रेन में किसी भी असामान्य इलैक्ट्रिकल एक्टिविटी का पता लगाया जा सकता है जो कि एपिलेप्सी का इशारा होती है।
सीटी एवं एमआरआई (CT एवं
MRI): यह मस्तिष्क की संरचनाओं की स्पष्ट तस्वीर देता है जिससे डॉक्टर किसी भी प्रकार की असामान्यता को पकड़ पाते हैं।
पेट एवं स्पैक्ट (PET एवं SPECT): ये टेस्ट रक्त प्रवाह या मेटाबॉलिक एक्टिविटी की जांच कर डायग्नॉसिस में मदद करते हैं।
एमईजी (MEG): यह ब्रेन एक्टिविटी के कारण पैदा होने वाले चुंबकीय क्षेत्रों की बारीकी से जांच कर एपिलेप्सी के बारे में अधिक गहन तरीके से जानकारी उपलब्ध कराता है।
एमआरएस (MRS): यह मस्तिष्क के रासायनिक पहलुओं का मूल्यांकन कर एपिलेप्सी के कारणों को समझने में मदद करता है।
जागरूकताः अब पहले की तुलना में अधिक लोगों को एपिलेप्सी के लक्षणों की पहचान है और वे जल्द से जल्द इसका इलाज लेते हैं।
नतीजेः बेहतर टूल्स की मदद से एपिलेप्सी का सटीक डायग्नॉसिस आसान हुआ है। कुल-मिलाकर, उन्नत टैक्नोलॉजी और जानकारी के चलते, हाल के वर्षों में एपिलेप्सी के निदान में वृद्धि हुई है।
3. लक्षण और उपचार क्या हैं?
यहां कुछ संकेतों/चिह्नों की जानकारी दी जा रही है जो इस बात का सूचक होते हैं कि आपके बच्चे को मिर्गी का दौरा पड़ रहा हैः
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एकटक घूरना
बाजुओं और पैरों में झटके के साथ मूवमेंट
शरीर में कसावट
बेहोशी
सांस लेने में कठिनाई
मल-त्याग या पेशाब पर नियंत्रण न रहना
बिना किसी वजह सके अचानक गिरने की समस्या
कुछ समय के लिए शोर या आवाज को महसूस नहीं करना
भ्रमित या अचंभित दिखना
सिर को लयबद्ध तरीके से हिलाना-डुलाना
तेजी से पलकें झपकना और घूरना
मिर्गी के दौरे के समय कई बार होंठ नीले पड़ जाते हैं और सांस लेने में भी कठिनाई हो सकती है। शरीर की इन हरकतों/गतिविधियों के बाद आपका बच्चा सो सकता है या वह खुद को डिसओरिन्टेड महसूस कर सकता है।
उपचार में शामिल हैंः
दवाएंः कई तरह की दवाएं उपलब्ध हैं और इन्हें मुंह या रेक्टम मार्ग से दिया जाता है। समय पर दवाओं का सेवन मिर्गी को कंट्रोल करने के लिए जरूरी है।
निगरानीः ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट और ईईजी ट्रैक मेडिकेशन और साइड इफेक्ट्स पर नियमित रूप से निगरानी।
केटोजेनिक डायटः कुछ बच्चों को लो कार्ब हाइ प्रोटीन और हाइ फैट डायट से फायदा मिलता है।
वैगस नर्व स्टिमुलेशन (VNS): सर्जरी की मदद से मस्तिष्क में एक डिवाइस को लगाया जाता है जिससे ब्रेन को नर्व इंपल्स पहुंचती हैं।
सर्जरीः यदि रोग दवाओं से नियंत्रित हो सके या ब्रेन के किसी खास भाग से पैदा हो, तभी इस विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए। यह काफी जटिल होती है।
सर्जरी का विकल्प हरेक के लिए नहीं है और अपने डॉक्टर के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही इसे चुनें।
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4. एपिलेप्सी से संबंधित हरियाणा के आंकड़ें
राज्य के 40 गांवों में 30,000 लोगों पर कराए अध्ययन में, प्रति 1000 लोगों की आबादी पर 4.2 एपिलेप्सी के मामले सामने आए हैं। यह लड़कों और कम उम्र के बच्चों, खासतौर से 6 से 15 साल की उम्र के किशोरों में अधिक पाया गया। अधिकांश मामलों (81%) में रोग का निदान डॉक्टरों का किया गया, और करीब (57%) मामलों में पिछले साल मिर्गी के दौरे की शिकायत पायी गई। लगभग 68% मामलों में, एपिलेप्सी की शुरुआत बचपन में हो गई थी और इनमें से करीब आधे मामलों में यह पाया गया कि छह साल या अधिक समय से रोग बना हुआ था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर लोगों ने झाड़-फूंक करने वाले नीम-हकीमों और लोकल हीलर्स से (57%) इलाज के लिए संपर्क किया। लगभग 36% मामलों में मिर्गी की फैमिली हिस्ट्री सामने आयी। इससे यह स्पष्ट है कि एपिलेप्सी एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है, खासतौर से बच्चों के मामले में यह बड़ी परेशानी का विषय है और इलाज के लिए लोग अनेक स्रोतों पर भरोसा रखते हैं।