टुडे एक्सप्रेस न्यूज़ | फाइनेंशियल सेक्टर यानी वित्तीय क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है, इसलिए इसकी स्थिरता और ईमानदारी बनाए रखना सबसे जरूरी है। भारत के वित्तीय सिस्टम के संरक्षक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) विनियमन और निगरानी के जरिए इस स्थिरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 31 जनवरी 2024 को जारी आरबीआई के हालिया निर्देश (RBI/2023-24/117) में भारत के वित्तीय व्यवस्था में नियामकीय संस्थाओं (आरई) के लिए नियमों के पालन पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। इस दिशानिर्देश का मकसद नियामकीय ढांचे को मजबूत करते हुए वित्तीय स्थिरता को बढ़ाना और आरई द्वारा स्थापित मानदंडों का पालन सुनिश्चित कर उपभोक्ता हितों की रक्षा करना है।
निवेशकों का भरोसा बढ़ाकर और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करके, ये निर्देश वित्तीय और नियामकीय वातावरण को भरोसेमंद बनाते हैं। साथ ही ये नए-नए आविष्कारों एवं अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए भी अनुकूल हैं। इससे आखिरकार भारतीय वित्तीय व्यवस्था की मजबूती और लचीलापन बढ़ता है।
आरबीआई का दिशानिर्देश
आरबीआई के सर्कुलर RBI/2023-24/117 का उद्देश्य लघु वित्त बैंकों (एसएफबी), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थानों सहित आरई की अनुपालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और बेहतर बनाना है। इस सर्कुलर में 30 जून 2024 तक लागू सभी अनुपालनों की निगरानी के लिए टूल्स या प्रणाली को अपनाने और लागू करने का आदेश दिया गया है।
यह निर्देश सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिए सिंगल या यूनिफाइड डैशबोर्ड की वकालत करते हैं, जहां सभी कॉम्प्लाएंस को एक जगह पर देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस निर्देश में अनुपालन आवश्यकताओं की पहचान, आकलन, निगरानी और प्रबंधन के साथ-साथ नियमों को पालन नहीं करने वाले के खिलाफ संबंधित हितधारक तक रिपोर्ट करने के वर्कफ्लो बनाने की बात की गई है। इसके अलावा, इसमें विनियमित इकाई की अनुपालन स्थिति की निगरानी हेतु वरिष्ठ प्रबंधन के लिए यूनिफाइड डैशबोर्ड व्यू की जरूरत का जिक्र किया गया है।
अनुपालन (कॉम्प्लाएंस) का पालन करने का महत्व
कॉम्प्लाएंस वित्तीय व्यवस्था की स्थिरता और भरोसा बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्राहकों, निवेशकों और अर्थव्यवस्था सहित हितधारकों के हितों की रक्षा करता है। नियमों का पालन नहीं करने से आरई को महत्वपूर्ण जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें छवि को होने वाला नुकसान, कानूनी देनदारियां, वित्तीय जुर्माना और संभावित विनायमकीय प्रतिबंध शामिल हैं। सख्त जांच व निगरानी के साथ सार्वजनिक जवाबदेही के समय में वित्तीय संस्थानों की विश्वसनीयता और स्थिरता बनाए रखने के लिए विनियामकीय जरुरतों का पालन करना आवश्यक है।
यूनिफाइड डैशबोर्ड के फायदे
आरबीआई का निर्देश एक यूनिफाइड डैशबोर्ड पर जोर देता है, जहां सभी अनुपालन-संबंधी सूचनाएं और प्रक्रियाओं को देखा जा सकता है। इस यूनिफाइड सिस्टम का उद्देश्य कॉम्प्लाएंस मॉनीटरिंग में पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही को बढ़ाना है। सभी हितधारकों को एक मंच पर एक साथ लाकर, यूनिफाइड डैशबोर्ड सहयोग को बढ़ावा देता है, संचार को सुव्यवस्थित करता है और अनुपालन जरूरतों की समय पर निगरानी और उसकी राह में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना सुनिश्चित करता है।
क्रियान्वयन समयसीमा को पूरा करना
नियामक संस्थाओं को 30 जून 2024 की समयसीमा तक आरबीआई के निर्देश का अनुपालन पूरा करने के लिए तेजी से काम करने की जरूरत है। इस समयसीमा को पूरा करने के लिए, आरई को अपनी मौजूदा अनुपालन प्रक्रियाओं और प्रणालियों के व्यापक मूल्यांकन के साथ बेहतर व्यवस्थित तरीका अपनाए जाने की जरूरत है। इसके बाद खामियों की पहचान करते हुए अनुपालन को लागू करने की योजना को बनाया जाना चाहिए, जो नए टूल्स या मैकेनिज्म को उनके सिस्टम में शामिल करने के लिए जरूरी प्रक्रियाओं के बारे में बताता हो। लागू किए जाने के दौरान विभागों और हितधारकों के बीच सहयोग जरूरी है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अनुपालन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए जरूरी सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया गया है। इसके अतिरिक्त, आरई को नई अनुपालन व्यवस्था के बेहतर संचालन के लिए कर्मचारी प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अलावा, टूल के क्रियान्वयन की प्रगति की समीक्षा के लिए निगरानी तंत्र को भी स्थापित किए जाने की जरूरत है।
जरूरी तकनीकी बुनियादा ढांचा
कॉम्प्लाएंस निगरानी के लिए एक एकीकृत डैशबोर्ड को लागू करने के लिए मजबूत तकनीकी बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है। आरई को अपने मौजूदा सिस्टम का मूल्यांकन करने और नए कॉम्प्लाएंस निगरानी उपकरणों के साथ इंटीग्रेशन की संभावनओं को जांचने की जरूरत होती है। क्लाउड-आधारित समाधान व्यापकता, पहुंच और रियल टाइम अपडेट देते हैं, जिससे कई स्थानों और संस्थाओं की निगरानी और आपसी समाझेदारी संभव हो पाती है।
तकनीकी समाधानों के माध्यम से अनुपालन प्रक्रियाओं को ऑटोमेट करने से मैनुअल कोशिशों में कमी आ सकती है और खामियों को कम करते हुए समग्र दक्षता में सुधार किया जा सकता है। जोखिम प्रबंधन डैशबोर्ड, ऑटोमेटेड ट्रैकिंग, ईमेल अलर्ट और विनामकीय अपडेट तक आसान पहुंच जैसी सुविधाएं अनुपालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करते हुए पारदर्शिता बढ़ाती है, जिससे गैर-अनुपालन जोखिम को कम किया जा सकता है।
नियामक संस्थाओं पर असर
आरबीआई के निर्देश का नियामक संस्थाओं के संचालन पर दूरगामी असर होगा। यूनिफाइड डैशबोर्ड की व्यवस्था लागू करते हुए आरई बेहतर अनुपालन रिपोर्टिंग और निरीक्षण की उम्मीद कर सकते हैं। वरिष्ठ प्रबंधन को कंपनी की अनुपालन स्थिति की बेहतर जानकारी होगी, जिसके आधार पर वे बेहतर निर्णय सक्रिय जोखिम प्रबंधन को अमली जामा पहना सकेंगे। गैर-अनुपालन की स्थिति पर तुरंत कार्रवाई करने के साथ केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म हितधारकों के बीच बेहतर जवाबदेही और जिम्मेदारी को बढ़ावा देगा। यह जुर्माना और नियामक कार्रवाइयों में कमी लाते हुए नियामकीय संस्थाओं की छवि और वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करेगा।
अनुपालन निगरानी का भविष्य
आरबीआई का निर्देश रेग्युलेटरी टेक्नोलॉजी के मुताबिक है, जो अनुपालन प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए और इससे संबंधित लागत व जटिलताओं को कम करने के लिए उन्नत तकनीक का लाभ उठाता है। वित्तीय क्षेत्र के विकसित होने के साथ ही अनुपालन निगरानी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआईI), मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों की भूमिका बढ़ने की उम्मीद है।
एआई और मशीन लर्निंग अल्गोरिदम पैटर्न की पहचान करने, खामियों का पता लगाने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को स्वचालित करने में सहायता कर सकते हैं, जिससे अनुपालन निगरानी की दक्षता में इजाफा होगा और वह ज्यादा सटीक होगा। ब्लॉकचेन तकनीक अपनी पारदर्शिता और न बदलने वाली क्षमता के सात अनुपालन डेटा को रिकॉर्ड करने, साझा करने और ऑडिट करने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, जिससे हितधारकों के बीच अधिक विश्वास और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा।
मजबूत अनुपालन संस्कृति के लिए बदलाव को अपनाना
अनुपालन निगरानी के लिए यूनिफाइड डैशबोर्ड को लागू करने पर आरबीआई का निर्देश भारतीय फाइनैंशियल सिस्टम की स्थिरता और मजबूती सुनिश्चित करने की दिशा में नियामक की प्रतिबद्धता को सामने रखता है। नियामक संस्थाओं को इस निर्देश को लागू करने की अहमियत के बारे में समझना चाहिए और इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी अनुपालन ढांचे को मजबूत करना चाहिए। क्लियरकम्पास जैसे तकनीकी समाधानों को अपनाकर और विभागों व हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, आरई कॉम्प्लाएंस की जटिलताओं को अधिक आसानी से मैनेज कर सकते हैं। अंततः, एक मजबूत अनुपालन संस्कृति न केवल जोखिमों को कम करती है बल्कि वित्तीय संस्थानों की विश्वसनीयता में बढ़ोतरी करती है, जिससे व्यापक अर्थव्यवस्था और कुल मिलाकर, समाज को लाभ होता है।