टुडे एक्सप्रेस न्यूज़। रिपोर्ट अजय वर्मा। फरीदाबाद। ग्रेटर फरीदाबाद सेक्टर-86 स्थित एकॉर्ड अस्पताल गंभीर से गंभीर बीमारियों के इलाज में आए दिन अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर मरीजों को जीवनदान दे रहा है। हाल ही में अस्पताल में एक बेहद दुर्लभ सर्जरी की गई है। सात साल से पार्किंसन की बीमारी से जूझ रहे ईराक हातिम की सर्जरी कर दिमाग में पेसमेकर डाला गया। दुर्लभ सर्जरी के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ है। इस सफल सर्जरी को अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग चेयरमैन डॉ. रोहित गुप्ता, न्यूरो सर्जरी विभाग के डायरेक्टर डॉ. विक्रम दुआ और डाॅ. रवि शेखर की टीम ने अंजाम दिया।
पत्रकार वार्ता में वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. विक्रम दुआ ईराक निवासी 59 वर्षीय हातिम सात साल से पार्किंसन की बीमारी से पीड़ित था। उसे बीमारी की शुरुआत में कंपकंपी और ब्रैडकिनेसिया (चलने-फिरने में कठिनाई) की परेशानी हुई और बाद में उसमें कठोरता आ गई। दवाओं के साथ उसका इलाज किया जा रहा था लेकिन उसके लक्षण बिगड़ते रहे और वह जो दवाएं ले रहा था। उससे साइड इफेक्ट होने लगे। बिना दवाओं के वह न तो ठीक से चल पाता था और न करवट लेता था और न ही बिस्तर से उठ पाता था। दवाओं से भी वह अपने हाथों और पैरों को नियंत्रित नहीं कर पाता था। अनेक अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और उसके लक्षण बिगड़ते गए। हाल में वह इलाज के लिए एकॉर्ड अस्पताल में आया। उसे डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी कराने की सलाह दी गई। उन्होंने बताया कि यह एक नई तकनीक है, जिसमे मरीज को बेहोश किए बिना सर्जरी को अंजाम दिया गया। इसमें दिमाग के राइट और लेफ्ट साइड दोनों हिस्सों में सबथैलेमिक न्यूक्लियस में इलेक्ट्रोड डाले गए।
इससे जो डोपामाइन निकलते हैं, उससे पार्किंसन की बीमारी खत्म हो जाती है। इस सर्जरी के बाद मरीज को अब दवाइयों खाने की जरुरत बंद और दवा के साइड इफेक्ट भी खत्म हो गए। मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है। उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
पत्रकार वार्ता में वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रोहित गुप्ता ने बताया कि पार्किंसन की बीमारी लोगों में तेजी से बढ़ रही है। खासकर युवाओं में पार्किंसन बीमारी के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। शुरुआती सालों में इसके लक्षण काफी धीमे होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। इसके चार मुख्य लक्षण हैं। इसमें हाथ, बाजू, टांगों, मुंह और चेहरे में कंपकपाहट होना, जोड़ों या हरकतों में धीमापन और संतुलन व तालमेल बिगड़ना शामिल हैं। शुरू में रोगी को चलने, बात करने और दूसरे छोटे-छोटे काम करने में दिक्कत महसूस होती है। यदि समय रहते बीमारी का इलाज शुरु कर दिया जाए तो उसे बढ़ने से रोका जा सकता है और मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है।