युवाओं को मिला जीवनदानः फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद ने युवा स्ट्रोक मरीजों का किया सफल उपचार

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Dr Vinit Banga, Director, Neurology & Head - Neuro-Intervention, Fortis Escorts Hospital, Faridabad, and Yogendra Nath Awadhiya, Facility Director, Fortis Escorts Hospital Faridabad along with patients 15-year-old Shivam and 27-year-old Ishant

टुडे एक्सप्रेस न्यूज। रिपोर्ट अजय वर्मा ।  फ़रीदाबाद । 9 दिसंबर, 2024:* फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल फरीदाबाद में न्यूरो-इंटरवेंशन प्रमुख तथा डायरेक्टर ऑफ न्यूरोलॉजी डॉ विनीत बांगा ने 15 से 34 वर्ष की आयुवर्ग के तीन युवा मरीजों का सफल उपचार किया। आज फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में, डॉ बांगा ने मीडिया को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ये तीनों स्ट्रोक मरीज तत्काल उपचार मिलने के बाद अब स्वास्थ्यलाभ कर रहे हैं।

पहला मामला, 15-वर्षीय स्कूली छात्र इशांत का है जिन्हें एक दिन स्कूल में अचानक अपने शरीर के दाहिने भाग में कमजोरी महसूस हुई, फिर चेहरा टेढ़ा होने लगा, बोलने में परेशानी और भ्रम की स्थिति पैदा होने के साथ ही आवाज़ भी अस्पष्ट होने लगी थी। उन्हें तुरंत फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद लाया गया जहां एमआरआई जांच से पता चला कि उन्हें स्ट्रोक पड़ा था। अस्पताल में उनकी अन्य जांच से यह भी पता चला कि उनकी धमनियां काफी संकुचित थीं जो कि एक प्रकार के ऑटोइम्यून कंडीशन वास्क्युलाइटिस या वास्क्युलोपैथी का परिणाम था। इस कंडीशन के कारण धमनियों में सूजन हो जाती है और उन्हें नुकसान भी पहुंचता है। इशांत का स्टेरॉयड्स और ब्लड थिनर से इलाज किया गया और फिलहाल उनकी हालत स्थिर है।

दूसरा मामला, राजस्थान के 27-वर्षीय शिवम का है, जो जिम में व्यायाम करने के काफी शौकीन हैं। एक दिन अचानक उन्हें सिर में दर्द शुरू हुआ जो 7 से 10 दिनों तक जारी रहा। उन्हें असंतुलन, डबल विज़न, चलने में परेशानी महसूस होने लगी थी और उनकी आवाज़ भी अस्पष्ट हो गई थी। उन्हें इलाज के लिए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद लाया गया जहां उनकी मेडिकल जांच से पता चला कि उनके मस्तिष्क का पिछला भाग (मेड्यूला) खून का थक्का

जमने (जो कि वर्टिब्रल आर्टरी डिसेक्शन के चलते हुआ था) के कारण क्षतिग्रस्त हो चुका था। इस कंडीशन में गर्दन में वर्टिब्रल धमनी की अंदरूणी परत फट जाती है जिसके कारण धमनियों के दीवारों के बीच से खून बहने लगता है, जिसके खून का थक्का जमता है और यह मस्तिष्क को खून का प्रवाह रोकता है। ऐसा अचानक किसी ट्रॉमा, जैसे कुश्ती या सैलॉन में मालिश करवाने, की वजह से हो सकता है। इस मामले में यह भारी वज़न उठाने (हेवी वेटलिफ्टिंग) के कारण हुआ। मरीज का फिलहाल ब्लड थिनर्स से इलाज किया जा रहा है और उनकी हालत स्थिर है।

तीसरा मामला, 34-वर्षीय मरीज श्री विकास का है जिन्हें अचानक सीने में दर्द की शिकायत होने पर अस्पताल लाया गया। जांच से पता चला कि उन्हें हार्ट अटैक आया था। जब उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा था तो उन्हें शरीर के दाहिने भाग में कमजोरी भी महसूस हुई और वह बोलने या दूसरों की बात समझने में असमर्थ भी हो चुके थे। अस्पताल में जांच के दौरान पता चला कि हार्ट अटैक के कारण उनके हृदय में खून के थक्के जमा हो गए थे जो यहां से मस्तिष्क तक पहुंच गए और मस्तिष्क को खून पहुंचाने वाली धमनियों को उन्होंने ब्लॉक कर दिया। मरीज का इलाज परंपरागत तरीके से ब्लड थिनर्स की मदद से किया गया और 3-4 दिनों में उनकी हालत में सुधार होने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

मामले की जानकारी देते हुए, डॉ विनीत बांगा, डायरेक्टर, न्यूरोलॉजी एंड हेड – न्यूरो-इंटरवेंशन, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल, फरीदाबाद ने कहा, “हालांकि स्ट्रोक के बारे में आम धारणा है कि यह बुजुर्गों को ही अपना शिकार बनाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि स्ट्रोक किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को पड़ सकता है। स्ट्रोक के करीब 15-20 % मामले 50 साल से कम आयुवर्ग के लोगों में देखे गए हैं। हाल में हमने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद में 15-35 वर्ष की आयुवर्ग के तीन युवा स्ट्रोक मरीजों का उपचार किया। इन्हें अस्पताल में भर्ती करते ही इनकी तत्काल जांच की गई और तुरंत उपचार दिया गया। इलाज मिलते ही इन तीनों मरीजों की हालत में सुधार होने लगा और अब उनकी हालत स्थिर है।”

डॉ बांगा ने कहा, “स्ट्रैस और व्यायाम रहित लाइफस्टाइल्स की वजह से युवाओं के बीच स्ट्रोक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है। सेहतमंद लाइफस्टाइल अपनाने, नियमित व्यायाम और संतुलित खानपान तथा नियमित मेडिटेशन, उचित तरीके से एक्सरसाइज़ और साथ ही, रेग्युलर हेल्थ चेक-अप कराते रहने से स्ट्रोक का जोखिम कम हो सकता है। युवाओं में स्ट्रोक आमतौर से बुजुर्गों को होने वाले स्ट्रोक से काफी अलग किस्म का होता है क्योंकि दोनों के कारण और जोखिम कारक अलग-अलग होते हैं। अधिक उम्र के वयस्कों में, डायबिटीज़, हाइ ब्लड प्रेशर, धूम्रपान और अल्कोहल प्रमुख कारण होते हैं। लेकिन बच्चों और युवाओं में स्ट्रोक के कारण बिल्कुल अलग होते हैं और यही कारण है कि उनके मामले में जांच और उपचार के तौर-तरीके भी अलग हैं। इन मामलों में, बार-बार स्ट्रोक की घटनाओं से बचने के लिए अलग रणनीति बनाने की जरूरत होती है। इन युवा मरीजों के सामने लंबा जीवन बाकी है, यदि समय पर डायग्नॉसिस और इलाज नहीं मिलता तो वे आजीवन किसी न किसी किस्म की विकलांगता से प्रभावित हो सकते हैं और जीवन की गुणवत्ता में भी गिरावट आती है।”

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