TODAY EXPRESS NEWS / REPORT / AJAY VERMA / फरीदाबाद, 2 फरवरी। विषम परिस्थितियों में रह कर भी एक लडक़ी फर्श से अर्श तक पहुंच सकती है, इसका एक जीवंत उदाहरण है अफगानिस्तान के काबुल शहर से आई शहला सादत। एक राजमिस्त्री के साधारण से घर में जन्म लेने वाली शहला तालिबानी कुंठित मानसिकता वाले देश में अपनी खुद की ज्वैलरी और हैंडलूम कंपनी का ना केवल सफलतापूर्वक संचालन कर रही है, अपितु अपने वतन की गुरबत झेल रही महिलाओं की मदद भी कर रही है। शहला का जन्म अफगानिस्तान की उसी धरती बोहमिया में हुआ है, जहां कभी तालिबानी आतंकवादियों ने शांति और मानवता को अपने प्रेम से सींचने वाले महात्मा बुद्घ की विशालकाय प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया था। जान अली और निखबा के घर में 26 दिसंबर, 1995 को जन्मी शहला सादत छ: भाई-बहनों में तीसरे स्थान पर है। उसने वर्ष 2017 में काबुल की हयात युनिवर्सिटी से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद माता-पिता के प्रोत्साहन से वह चीन में चंचा शहर चली गई। वहां एक साल तक शहला ने जुमोलॉजी सीखी। आभूषण और कीमती पत्थरों के काम को उसने तल्लीनता से सीखा और काबुल आकर इसी विधा में कारोबार शुरू कर दिया। सादत बानु जेम्स एंड ज्वेलरी तथा सादत बानु हैंडीक्राफ्ट्स की सीईओ शहला सादत के पास तीस महिला कारीगरों का स्टाफ काम कर रहा है और लगभग दो सौ से अधिक महिलाएं उसके साथ हैंडलूम के व्यवसाय में जुड़ी हुई हैं। हिंदुस्तान पहली बार आई शहला ने सूरजकुंड में स्टाल लगाने का प्रथम अनुभव प्राप्त कर रही है। वह इससे पहले दुबई इंटरनेशनल फेयर में स्टाल लगा चुकी है। एक आधुनिक एवं प्रगतिशील मुस्लिम उद्यमी ने दो साल में ही चीन, भारत, दुबई, कजाकिस्तान तक अपने व्यापार को फैला लिया है। यही नहीं उसकी दो बड़ी बहनें जहां 17-18 साल की उम्र में घर बसा चुकी थी, वहीं 26 साल की शहला अभी अपने विवाह के बारे में सोच-विचार कर रही है। उसकी सोच यहीं तक सीमित नहीं है। घर में उसके पिता बीमार है। इस परिस्थिति से ना घबराकर वह अपने तीन भाईयों, 17 वर्षीय मोहम्मद रिजा को स्वीडन, 19 वर्षीय मो. अली को फ्रांस एवं 21 वर्षीय मो. दाउत को जर्मनी देश में पढ़ा रही है। घर व भाईयों का व्यय वह खुद वहन करती है। उसे अफगानिस्तान के राष्टï्रपति मोहम्मद गनी की पत्नी बीबी गुल व उप राष्टï्रपति अब्दुल्ला अब्दुल्ला सम्मानित कर चुके हैं। शहला सादत की गणना देश की चुनिंदा उन्नतिशील युवतियों में होती है। वह अपनी आमदनी से समाज में गरीबी झेल रही महिलाओं की सहायता करती है, वह भी बगैर किसी दिखावे के चुपचाप। भारत देश की सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित शहला कहती है कि अफगानिस्तान में करीब 27 करोड़ की आबादी आपस में लड़ती रहती है और वहां खून-खराबा मचा रखा है। जबकि भारत में कितनी शांति है और यहां के नागरिक किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन में कोई दखल नहीं देते, चाहे वह किसी धर्म या जाति का हो। पांचों वक्त नमाज अता करने वाली शहला सादत का कहना है कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है, किंतु जेहाद के नाम पर उसके धर्म की जालिम तस्वीर दुनिया के सामने प्रस्तुत की जा रही है। इस्लाम में कहीं भी महिलाओं को तरक्की ना करने देने का जिक्र नहीं है। इसके बावजूद यदि वह अफगानिस्तान के किसी सीमाप्रांत में होती तो शायद उसका हश्र बुरा होता। शहला को परिवार नियोजन पर भी कोई आपत्ति नहीं है और वह खुद चाहती है कि शादी करने के बाद संतान दो तक ही सीमित रखे। उसकी एक और इच्छा है कि वह अपने माता-पिता को हज पर मक्का अवश्य भेजे। आमीन…….