टुडे एक्सप्रेस न्यूज़। रिपोर्ट मोक्ष वर्मा। सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। बस ज़रूरत होती है कभी हार न मानने की। और आज ही का वो दिन है जब आनंद एल राय का एक सपना उड़ान भरता है—भारतीय दर्शकों को क्वालिटी सिनेमा देने का सपना। साल 2015 में आई कॉमेडी-ड्रामा निल बटे सन्नाटा इसी सोच की एक मिसाल थी। एक छोटी सी फिल्म, लेकिन एक बड़े संदेश के साथ—यह फिल्म चुपचाप थिएटर में आई, और सीधे दर्शकों और क्रिटिक्स के दिलों में उतर गई।
आनंद एल राय की कलर यलो प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फिल्म ने हमें याद दिलाया कि एक अच्छी कहानी को न तो बड़े सितारों की ज़रूरत होती है, न ही भारी-भरकम प्रमोशन्स की। बस एक ऐसा आइडिया चाहिए जो दिल से निकला हो और एक टीम जो उस पर पूरी शिद्दत से यकीन करती हो। निल बटे सन्नाटा की कहानी साधारण थी, लेकिन उसका असर असाधारण था। यह एक सिंगल मदर की कहानी थी, जिसे बेमिसाल अंदाज़ में निभाया स्वरा भास्कर ने—एक ऐसी मां जो घरेलू सहायिका के रूप में काम करती है, लेकिन अपनी बेटी के लिए बड़े सपने देखती है।
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इस फिल्म को खास बनाने वाली बात यह थी कि इसने हमें दिखाया कि कोई भी सपना बहुत बड़ा नहीं होता और कोई भी सपने देखने वाला बहुत छोटा नहीं होता। उम्र, बैकग्राउंड, पैसा—इनमें से कोई भी मायने नहीं रखता अगर आपके अंदर मेहनत करने और हार न मानने का जज़्बा हो। इस फिल्म ने इस सोच को भी चुनौती दी कि एक हिट फिल्म में मेल लीड होना ज़रूरी है। निल बटे सन्नाटा में कैमरे के आगे और पीछे दोनों ओर महिलाएं थीं, और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत थी। यह अश्विनी अय्यर तिवारी की पहली फिल्म थी, और उन्होंने साबित किया कि महिलाएं भी ऐसी कहानियां कह सकती हैं जो हर किसी को छू जाए—चाहे वो मर्द हो या औरत, बच्चा हो या बूढ़ा।
नौ साल बाद भी निल बटे सन्नाटा उतनी ही ताज़ा, प्रेरक और सच्ची लगती है। यह उन गिनी-चुनी फिल्मों में से है जो आपको मुस्कुराना सिखाती है, सोचने पर मजबूर करती है और सबसे बढ़कर—आपको यकीन दिलाती है। कि आप कहां से आते हैं, यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है कि आप कहां जाना चाहते हैं। 9 साल बाद भी इस दिल को छू लेने वाले रत्न को सलाम, जिसने साबित किया कि सच्ची कहानियां और प्रतिभा हमेशा चमकती हैं, और उम्मीद, अगर उसे कसकर थामा जाए, तो ज़िंदगी बदल सकती है।