TODAY EXPRESS NEWS : जहाँ आज के इस आधुनिक युग में बच्चो से लेकर बड़ो में मोबाइल , टेबलेट एलईडी टीवी जैसे कई मनोरंजन के साधन इस्तेमाल किये जा रहे है वहीँ सूरजकुंड मेला प्रांगण में पुराने समय में मनोरंजन का एक मात्र साधन बाइस्कोप आज भी लोगो को अपनी और आकर्षित करने में कामयाब हो रहा है हालांकि माँ बाप बच्चो को इस प्राचीन सांस्कृति से रूबरू करवाने के लिए ज़बरदस्ती उन्हें बायस्कोप दिखा रहे है ताकि नयी पीढ़ी इस लुप्त होती कला के बारे में जान सके. 33 वे अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में पुराने समय में मनोरंजन के एकमात्र साधन बाइस्कोप को देखने के लिए क्या बच्चे क्या बड़े लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे है. जहाँ माता – पिता बाइस्कोप देखकर अपना बीता हुआ समय याद कर रहे है वहीँ बच्चो के लिए इस आधुनिक युग में बाइस्कोप एक नयी चीज है जिसे देख वह काफी खुश हो रहे है. पुराने जमाने में मनोरंजन का एकमात्र साधन बाइस्कोप चाहे आज के आधुनिक युग में बीती दिनों की बात बन कर रह गया है लेकिन मेलो में आज भी बायस्कोप के दर्शन हो जाते है. दिखाई दे रहा यह नज़ारा फरीदाबाद के सूरजकुंड मेले का है जहाँ अभिवावक अपने बच्चों को पुरानी संस्कृति से रूबरू करवाने के लिए उन्हें बायस्कोप दिखा रहे है. वहीँ इस बायस्कोप का प्रदर्शन करने वाले मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले कलाकार भवरलाल ने बताया की वह 33 सालो से इस मेले में लगातार अपना बाइस्कोप लेकर आ रहे है और वह मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले है। उन्होंने बताया की मेले में उनका बाइस्कोप लगातार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और बच्चे और बड़े सभी शौक से इसे दिखा रहे है. उन्होंने बताया की इस कला को अलग – अलग प्रदेशो में अलग अलग नामो से पुकारा जाता है। इस बाइस्कोप को झांसी की तरफ झांकी कहा जाता है और हरियाणा में बारह मन की धोबन , राजस्थान में सिनेमा और दिल्ली में बाइस्कोप के नाम से जाना जाता है। वहीँ दर्शको का कहना था मेले में आये अभिवावकों ने बताया की हमारे समय में बायस्कोप ही एक मात्र मनोरंजन का साधन था जिसे वह गली मोहल्लो में देखते थे और आज यहाँ मेले में वह अपने बच्चो को बायस्कोप दिखाकर पुरानी सांस्कृति से रूबरू करवा रहे है ताकि उन्हें मालूम हो की पुराने समय में बायस्कोप ही मनोरंजन का एकमात्र साधन हुआ करता था.
( टुडे एक्सप्रेस न्यूज़ के लिए अजय वर्मा की रिपोर्ट )