फेफड़ों को दुरुस्त रखना है तो धूम्रपान और धूम्रपान करने वालों से दूर रहें : स्वास्थ्य विशेषज्ञ

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ODAY EXPRESS NEWS : नई दिल्ली। इस साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस (डब्ल्यूएनटीडी) का फोकस तंबाकू और फेफड़ों का स्वास्थ्य है। हर साल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएच) और वैश्विक भागीदार 31 मई को डब्ल्यूएनटीडी का निरीक्षण करते हैं और लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करते हैं। इस दौरान लोगों को किसी भी तरह के तम्बाकू का उपयोग करने से हतोत्साहित किया जाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस वर्ष यह अभियान तंबाकू से फेफड़े पर कैंसर से लेकर श्वसन संबंधी बीमारियों (सीओपीडी) के प्रभाव पर केंद्रित होगा। लोगों को फेफड़ों के कैंसर के बारे में सूचित किया जाएगा, जिसका प्राथमिक कारण तंबाकू धूम्रपान है। तम्बाकू के धूम्रपान के कारण विश्व स्तर पर फेफड़ों के कैंसर से दो-तिहाई मौतें होती हैं।  यहां तक कि दूसरो द्वारा धूम्रपान करने से पैदा हुए धुएं के संपर्क में आने से भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो सकता हैरू धूम्रपान छोड़ने के 10 वर्षों के बाद, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर का खतरा लगभग आधा हो जाता है।

फेफड़ों के कैंसर के अलावा, तम्बाकू धूम्रपान भी क्रोनिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग (सीओपीडी) का कारण बनता है। इस बीमारी में फेफड़ों में मवाद से भरे बलगम बनात है जिससे दर्दनाक खांसी होती है और सांस लेने में काफी कठिनाई होती है। इसी तरह, छोटे बच्चों को जो घर पर एसएचएस के संपर्क में आते  हैं, उन्हें अस्थमा, निमोनिया और ब्रोंकाइटिस, कान में संक्रमण, खांसी और जुकाम के बार-बार होने वाले संक्रमण और लगातार श्वसन प्रक्रिया में निम्न स्तर का संक्रमण जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं होती हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुरसार विश्व स्तर पर, अनुमानित 1.65 लाख बच्चे 5 वर्ष की आयु से पहले दूसरों द्वारा धूम्रपान से पैदा हुए धुएं के कारण श्वसन संक्रमण के कारण मर जाते हैं। ऐसे बच्चे जो वयस्क हो जाते हैं, वे हमेशा इस तरह की समस्याओं से पीड़ित रहते हैं और इनमें  सीओपीडी विकसित होने का खतरा होता है।

डब्ल्यूएनटीडी के मौके पर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के उप निदेशक और वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संस्थापक डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि गर्भवती महिला द्वारा धूम्रपान या एसएचएस के संपर्क में आने से भू्रण में फेफड़ों की वृद्धि कम हो सकती है और इसका असर भू्रण की गतिविधियों पर हो सकता है। गर्भपात हो सकता है, समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है नवजात कम जन्म का हेा सकता है और यहां तक कि अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम भी पैदा हो सकता है। तम्बाकू, किसी भी रूप में धूम्रपान या धुआं रहित, बहुत खतरनाक है। मृत्यु या विकलांगता के अलावा इसका कोई उपयोग नहीं है। सरकार के वर्ष 2025 तक के प्रयासों के बावजूद देश में यह आम बीमारी है। ग्लोबल टीबी रिपोर्ट- 2017 के अनुसार, भारत में टीबी की अनुमानित मामले  दुनिया के टीबी मामलों के लगभग एक चैथाई लगभग 28 लाख दर्ज की गई थी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी फेफड़े को नुकसान पहुँचाता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो यह आगे चलकर उसकी स्थिति और खराब हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का धुआं इनडोर प्रदूषण का बहुत खतरनाक रूप है, क्योंकि इसमें 7000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 कैंसर का कारण बनते हैं। तंबाकू का धुआं पांच घंटे तक हवा में रहता है, जो फेफड़ों के कैंसर, सीओपीडी और फेफड़ों के संक्रमण को कम करता है।

संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी अरविंद माथुर ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के अनुसार, भारत में सभी वयस्कों में 10.7 प्रतिशत (99.5 मिलियन) वर्तमान में धूम्रपान करते हैं। इनमें  19 प्रतिशत पुरुष और 2 प्रतिशत महिला शामिल हैं। भारत में 38.7 प्रतिशत वयस्क घर पर सेकेंड हैंड स्मोक (एसएचएस) और 30.2 प्रतिशत वयस्क कार्यस्थल पर एसएचएस के संपर्क में आते हैं। सरकारी भवनों, कार्यालयों में 5.3 प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में 5.6 प्रतिशत रेस्तरों में 7.4 प्रतिशत और सार्वजनिक परिवहन में 13.3 प्रतिशत लोग सेकंड हैंड स्मोक के संपर्क में आते हैं।  तम्बाकू में फेफड़ों के कैंसर का कारण बनने वाले रयायनों में आर्सेनिक (चूहे के जहर में पाया जाता है), बेंजीन (कच्चे तेल का एक घटक जो अक्सर अन्य रसायनों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है), क्रोमियम, निकल, विनाइल क्लोराइड (प्लास्टिक और सिगरेट फिल्टर में पाया जाता है), पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, एन-नाइट्रोसेमाइंस, सुगंधित एमाइन, फॉर्मलाडेहाइड (इमल्मिंग द्रव में पाया जाता है), एसिटालडिहाइड और पोलोनियम -210 (एक रेडियोधर्मी भारी धातु) शामिल हैं। ऐसे कई कारक हैं जो तम्बाकू की कार्सिनोजेनेसिस को बढ़ा या घटा सकते हैं – विभिन्न प्रकार के तंबाकू के पत्ते, फिल्टर और रासायनिक मिश्रण  की उपस्थिति या अनुपस्थिति कैंसर होने के कारक हो सकते हैं। इस तरह के कारक तंबाकू के विशिष्ट रसायन नहीं हो सकते, बल्कि सिगरेट में मौजूद रासायनिक मिश्रण है।

मनिपाल अस्पताल, द्वारका के कैंसर सर्जन डा.वेदांत काबारा ने कहा कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस) 2017 के अनुसार  भारत में आयु 15 वर्ष से अधिक है और वर्तमान में किसी न किसी रूप में तम्बाकू का उपयोग करते हैं ऐसे वयस्कों की संख्या  28.6 प्रतिशत (266.8 मिलियन) है। इन वयस्कों में 24.9 प्रतिशत (232.4 मिलियन) दैनिक तंबाकू उपयोगकर्ता हैं और 3.7 प्रतिशत (34.4 मिलियन) कभ्ी कभार के उपयोगकर्ता हैं। भारत में हर दसवां वयस्क (10.7 प्रतिशत 99.5 मिलियन) वर्तमान में तंबाकू का सेवन करता है। 19.0 प्रतिशत पुरुषों में और 2.0 प्रतिशत महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन पाया गया। धूम्रपान की व्यापकता ग्रामीण क्षेत्रों में 11.9 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 8.3 प्रतिशत थी। 20-34 आयु वर्ग के आठ (12.2 प्रतिशत) दैनिक उपयोगकर्ताओं में से एक ने 15 साल की उम्र से पहले धूम्रपान करना शुरू कर दिया था, जबकि सभी दैनिक धूम्रपान करने वालों में से एक-तिहाई (35.8 प्रतिशत) ने जब वे 18 साल से छोटे थे तब से धूम्रपान करना शुरू कर दिया था।

नई दिल्ली एक नजर  दिल्ली में वर्तमान में 11.3 प्रतिशत लोग धूम्रपान के रुप में तंबाकू का सेवन करते है, जिसमें 19.4 प्रतिशत पुरुष, 1.8 प्रतिशत महिलांए शामिल है। यंहा पर 8.8 प्रतिशत लेाग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते हुए है, जिसमें 13.7 प्रतिशत पुरुष व 3.2 प्रतिशत महिलाए है।  दिल्ली में 38.4 प्रतिशत लोग घरेां में सेकंड हैंड स्मोक का शिकार हेाते है, जिसमें 40 प्रतिशत पुरुष, 36.5 प्रतिशत महिलांए, कार्यस्थल पर 20.4 प्रतिशत लोग, जिसमें 21.5 प्रतिशत पुरुष, 14.5 प्रतिशत महिलाएं, सरकारी कार्यालय व परिसर में में 6.7 प्रतिशत शामिल है।

( टुडे एक्सप्रेस न्यूज़ के लिए अजय वर्मा की रिपोर्ट )


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